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परिधि से बाहर / रमेश रंजक

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आँगनधर्मी गीत
सड़क पर खड़े हो गए हैं
छन्द, शब्द सब कड़े हो गए हैं
अर्थ, शब्द से बड़े हो गए हैं

तेवर ताले तोड़े
परिधि से बाहर आए हैं
हाथों में, आँखों में
दो चिनगारी लाए हैं

हर पासँगवाली तखरी को
                    धड़े हो गए हैं

सन सत्तावन जैसा ही
यह सन पचहत्तर है
ऐसे अंक बदल डाले हैं
हालत बत्तर है

वे क्या समझेंगे ?
जो चिकने घड़े हो गए हैं