Last modified on 15 मई 2016, at 08:09

परिन्दे उड़ने की सही दिशा जानते हैं / संजय कुमार शांडिल्य

उत्तर से दक्षिण की ओर उड़ रहे परिन्दे
उड़ने की सही दिशा जानते होंगे

हम-आप बिलखते-चिलकते रह जाते हैं
इस धूप में, इस असमय बारिश में
इस बेलगाम रफ़्तार में चित्र-लिखित

इस ध्वंस के बाद की सिसकती मायूसी में
धरती के इस या उस करवट में
समुद्र के फेनिल उद्वेलन में
हर विषाद में, हर यातना में
इस लहराते हुए समय की चिरन्तन चेतना के
संगुफन में
इस प्रलय के घनान्धकार में
जो अनान्दोलित हैं हमी हैं

उत्तर से मृत्यु की एक लहर आती है
और दक्षिण जीवन की दिशा है

जिन्हें एक पक्ष चुनना है — सुविधा का श्वेत पक्ष
फिर किसी और पेड़ पर
मिट्टी और रेशों से
नया घोंसला बनाते हैं
उनकी नींद में सपने हरे रहते हैं

इस विलाप के समय की अनथक
अनिद्रा में
हमारा चुना हुआ उजाड़ है
हमें यहीं रहना है
सँवलाए हुए सपनों को
सुबह-शाम जल देते ।