परियों के देश में / सोम ठाकुर
परियों के देश में ना जाना युवराज तुम
जाकर फिर लौट नही पाओगे
पथराकर बेघर हो जाओगे
बूँद बूँद पानी को तरसा देगी तुम्हे
कुछ भी छूकर सोना करने की कामना
हँसते कंकालों तक पहुँचा देगी तुम्हे
जीवन भर अनहोनी करने की कल्पना
चाँदी के फूल कभी भूल से न तोड़ना
तोड़ोगे स्वयं बिखर जाओगे
रक्त सने खंजर हो जाओगे
मस्तूलों की अपनी दिशा नहीं होती है
वे तो आकाश -चढ़ी हवा के गुलाम है
सिंहासन राजदंड, चँवर-छत्र-ध्वजा-दुर्ग
ये सब के सब जीवित विषय के परिणाम है
मोती की नावों पर पाँव ना धरना तुम
भँवर - भँवर डूबो उतराओगे
बर्फ के समंदर हो जाओगे
समय तो स्वयं में है कोलाहल की सुरंग
जिसकी बनते -बनते मिटने की बान है
अभिशापित तीर लिए व्यर्थ यहाँ घूमना
धुँए धनुष के ऊपर मन का संधान है
अलसा- अलसा कर निंदियाओगे
देख देख पतझर हो जाओगे
परियों के देश में न जाना युवराज तुम