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परिवर्तन हो / महेन्द्र भटनागर


परिवर्तन हो !
नव-जीवन हो !
जग के कण-कण में
जागृति का नव-कंपन हो !
युग-युग के बाद उठें फिर से
उर-सागर में लहरें सुख की,
स्रोत बहे जीवन का निर्मल !
जन-जन-मन
संसार सुखी हो !
आएँ मधु-क्षण
चिर वंचित संसृति में फिर से,
पात्रा सुधा का भर-भर जाए,
मादक सौरभ,
सपने मीठे,
शांति मधुर हो,
दुनिया का उजड़ा झुलसाया
सूखा उपवन
नन्दन-वन हो !
परिवर्तन हो,
परिवर्तन हो !:
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