भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

परिवर्तन / नरेश सक्सेना

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बरसों से बंद पड़ी हवेली में
कोई नहीं आया था
एक दिन आई आंधी
उसके साथ आई धूल
सूखे हुए पत्ते और तिनके और काग़ज़ के टुकड़े
पूरी हवेली एक अजीब ताज़गी से भर गई।