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परिवार में सुख-दुःख / अनुभूति गुप्ता
Kavita Kosh से
आशाओं के दीप की रक्ताभ लौ
जिस देहलीज़ से उन्मुख होती है,
उद्विग्न मनःस्थिति
में भी
उस परिवार के
हर एक सदस्य के
मुखमण्डल पर
उजली मुस्कान
हरदम खिलती है
हँसते-गाते तय कर लेते हैं वे
विचित्र उथल-पुथल से भरे
टेढ़े-मेढ़े रास्तों को,
सुलझा लेते हैं वे
विक्षिप्त उलझनों को,
पहाड़ों की चढ़ाई/झरनों की नपाई
बहुत सरल लगने लगती है
जब...
घर की दीवारें
प्यार-पगी ईंटों से निर्मित हों
तो सम्बन्धों में आँगन की
तुलसी महकती है
परिवार में साथ मिलकर
सुख-दुःख बाँटना जरूरी है
बिन अपनों के साथ के
प्राप्त उपलब्धियाँ भी अधूरी है।