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परिवेश: एक जलता हुआ भट्ठा / शिवबहादुर सिंह भदौरिया
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जब-तब
लोहे की लम्बी छड़ों से
झरोखों के इस्पाती ढक्कनों को
खोलकर
अदृश्य छाया-कर
अनुमानते हैं-
पकने की स्थितियाँ
नीली मिट्टी की तरह बिछा हुआ
आसमान,
धुआँ उगलती चिमनियाँ,
दैत्याकार जबड़े फैलाती
अग्नि-लपटों पर
रखी गईं कच्ची ईंटे: मैं, तुम, वे
परिवेश: एक जलता-
हुआ भट्ठा।