Last modified on 8 अगस्त 2008, at 23:28

परिवेश के प्रति / महेन्द्र भटनागर

कितनी तीखी ऊमस से
परिपूर्ण गगन,
लहराती अग्नि-शिखाओं से
कितना परितप्त भुवन !
कितना क्षोभ-युक्त
भाराक्रांत
दमित
मानव-मन !
जीवन का
वातावरण समस्त
थका-हारा,
काराबद्ध !

आओ
इसको बदलें,
गतिमान करें,
मल्लार-राग से भर दें
जलवाह !
पवन-संघातों से
निःशेष करें
दिग्दाह !