परिस्थिति छींकने लगी है / आयुष झा आस्तीक
कौआ के उचरने से
पहले ही
अब बगुला गटकना
चाहता है मछलियां...
इसलिए रात को
मरने वाली मछलियां
अब बगुला के जागने से
पहले ही
हो जाती है जीवित...
मछुआरे की बीबी
मसल्ला पीसते हुए
बहलाती रहती है
साहुकारों को...
अपनी जीभ से
लार टपकाते हुए
साहूकर करने लगा है
मर-मलाई...
या हो सकता है कि
शायद फाह-लोअत का
भी दिया जा रहा हो
प्रलोभन
मछुआरा की अनुपस्थिती में...
साहूकर की
संदिग्ध नियत को भाँप कर
घर में मौजूद आधा र्दजन
बच्चे
कित-कित थाह खेलते हुए
दे रहे हैं अपनी मौजूदगी
का संदेश...
परिस्थिति छींकने लगी है
यानि फिर से
तूफान आने वाला है शायद...
मेढ़कों की टर्रटर्राहट को
सुन कर
मन ही मन
खुश हो रही है मछलियां...
देखो ना!
वो काले-हरे बादल
पूर्णतः बकेन होकर
पनिहयाने लगे हैं
बिसकने से पहले...
यानी तेज बारिश की है
आशंका...
बगुला भागने लगा है
अचानक शहर की ओर...
मछुआरे ने अपने नाँव पर ही
जमा लिया है डेरा
और कर रहा है
नन्ही मछलियों के
व्यस्क होने का इंतजार...