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परीक्षा देते बच्चे / रंजना जायसवाल

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आज परीक्षा है
तनाव में हैं बच्चे
कुछ ने लगा रखा है माथे पर
पूजा करके रोली चन्दन
खा कर आए हैं मीठा दही कुछ
पढे जा रहे हैं अभी भी कुछ
कर रहे हैं सवाल—पेपर कठिन तो नहीं आएगा,मिस
अध्यापकों के चेहरे सर्वज्ञ भाव से तने हैं
बच्चों के अज्ञ भाव से मुरझाए
वे उम्मीद भरी आँखों से देखते हैं मुझे
और मेरी हँसती आँखों से आश्वस्त होते हैं जरा-जरा।

बच्चे परीक्षा हाल में हैं
बंट चुकी हैं कांपियाँ
कुछ बच्चे आँखें बंद कर प्रार्थना कर रहे हैं
काँपी के कोने पर लिख रहे हैं ‘ओम’कुछ
दुहरा रहे हैं होंठों में ही याद किया
परेशान हैं बुरी तरह कुछ।
बच्चे प्रश्न हल कर रहे हैं
कुछ की कलम चल रही है तेजी से
कलम से ठोंक रहे हैं माथा कुछ
सिर खुजला रहे हैं
तो देख रहे हैं इधर-उधर उम्मीद से कुछ
अलग-अलग कद-काठी रूप-रंग के सुंदर प्यारे बच्चे
डूबे हैं अपने-अपने काम में पसीने से लतपथ
उन्हें देखते हुए मुझे लगता है
ये बच्चे विविध- वर्णी फूल हैं
जिन्हें बिछाया गया है
परीक्षा सुंदरी के पैरों तले
और पार्श्व में बज रहा है गीत
‘पाँव छू लेने दो फूलों को इनायत होगी।’