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परेशान मरने तक / अनिरुद्ध उमट
Kavita Kosh से
छत पर गिरते तारों की राख से
रहा परेशान
मरने तक
नहीं चाहता था
कहीं बचे रह पाएँ
नींद की प्रतीक्षा में भटकते
पैरों के निशान
क्या तारे चमक-चमक राख होते
प्रत्येक मृत्यु की प्रतीक्षा में
क्या निशानी रह जानी
सुराग बचा रह जाना
ज़रूरी है
यह सुन तारों ने
कुछ ताज़ा राख
और गिरा दी ।