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पर्चे चिपके दीवारों पर, साब गाँव में आयेंगे / अशोक अंजुम

पर्चे चिपके दीवारों पर, साब गाँव में आयेंगे!
ख़बर गर्म घर-चैबारों पर, साब गाँव में आयेंगे!

कई साल पहले आये थे, भाषण देकर लौट गये,
अब चर्चा सब घर-द्वारों पर, साब गाँव में आयेंगे!

भूखों को रोटी देंगे और नंगों को देंगे कपड़े,
रौनक होगी बीमारों पर, साब गाँव में आयेंगे!

कल ही डाकू उठा ले गए रधिया, गौरी, पारो को
जमीं मुट्ठियाँ हथियारों पर, साब गाँव में आयेंगे!

बहू-बेटियाँ छिपीं घरों में, काँप रहीं थर-थर डर से,
रखी आबरू अंगारों पर, साब गाँव में आयेंगे!