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पर्दे के पीछे / कौशल किशोर
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पर्दे के पीछे
संगीनों के जंग छुड़ाए जा रहे हैं
पर्दे के पीछे
रायफल की नाल साफ़ की जा रही है
पर्दे के पीछे
एक-सी वर्दी में फ़ौज खड़ी है
कतारबद्ध कूच के लिए
अपने सिपहसालारों के आदेश की
प्रतीक्षा करती
पर्दे के पीछे
खन्दक खोदे जा रहे हैं
सुरंगे बिछाई जा रही हैं
तेपखानों पर तोपची
बस, अब चढ़ने ही वाले हैं
पर्दे के पीछे
नगाड़े बज रहे हैं
युद्ध-गीत जारी है
सेना-प्रधान नक़्शे बना रहे हैं
इस बार बचे-खुचे किले ध्वस्त करना है
पर्दे के पीछे
रंगमंच पर
नाटक की तैयारी मुक्कमल हो चुकी है
संविधान सीलबन्द
सब अपनी जगह फिट
फाइनल घंटी बजने वाली है
पर्दा उठने वाला है
अब सीमाओं का सन्नाटा टूटेगा
वह लहू से खेलेगी
और दुनिया देखेगी।