पर्वत: एक युवक / पयस्विनी / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
के ई उद्धत उन्मत यौवन उद्गत उन्नत भाल?
सर्वोपरि बढ़बाक महत्त्वाकांक्षा जनि उत्ताल!!
जननि अतल पाताल, ज्वार उर धधकि ललकि भू गर्भ
चीरि धरातल, उठले जाइछ करइत कत संघर्ष
पड़इछ किरण प्रखर उत्तप्त तपन तपइत कत घोर
घन गर्जन-तर्जन नहि गनइत वज्र - चोट नहि ओट
हिम निपात सहइत नित चित्त न चंचल चन्द्र वितान
शीत-ताप-वर्षा प्रपात रुखि-बिरुखि झुकय नहि जान
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यदि च देश - सीमापर पड़इछ माथ सुरक्षा भार
सहि कत-कत आघात न रिपुकेँ करय दैछ संचार
यदि च देश हित कृषि-संपत्तिक देख - रेख दायित्व
कत श्रम घमि, झरि स्वेदनिर्झरेँ पटबय पटु स्थायित्व
यदि च धातु - मणि - रत्नेँ पूरित हो करबाक उदेश
युग-संचित खनिजहु खुनि-खुनि करइछ सम्पन्न स्वदेश
वन सम्पदा विशाल, पालनो पशुक चरीक प्रबन्ध
गिरि - गुरु युवा जुड़ओ युगजीवी नेता कर्म निबन्ध
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कन-कन माटि बालु उघइत भरइत कत खदक खाधि
पाथर थुरइत वन जंगलहु लगबइत विविध उपाधि
करइछ युग युगसँ उपभोग योग्य सामग्री पूर
जय जय श्रमिक! धातु खनि खनइत घमइत अथ च मजुर
खेत-पथार बाध वन सघन पटबइत निर्झर स्रोत
जय किसान उपजबइत कत बिध अन्न-धान मनि-मोति
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यदि कखनहु रण-भेरी बजइछ सजइछ वेष जवान
गुहा व्यूह कत गूढ विरचि गचि घाटी रा सामान
हिम उष्णीय शीर्षपर पहिरल उपत्यका पदत्राण
कवच सघन वन, हाथ साल बन्दूक तानि मयदान
युगजीवी अभिमानी मानी पर्वत देशक प्राण
जय गिरिपति! जय सीमापति जय-जय हिमवान जवान!!