पर्वत के ऊपर है वंशी
नीचे मुरली
मेरी दोनों ओर धार है
धार नहीं प्रिय की पुकार है
मैं रेती-सी बंधी बीच में
बंदी होता मेरा प्यार है
मूढ़ बधिक के बंधन में कसती
मैं कुरली
नीचे मुरली
पर्वत के ऊपर है वंशी
नीचे मुरली
मेरी दोनों ओर धार है
धार नहीं प्रिय की पुकार है
मैं रेती-सी बंधी बीच में
बंदी होता मेरा प्यार है
मूढ़ बधिक के बंधन में कसती
मैं कुरली
नीचे मुरली