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पर्वत के ऊपर है वंशी / ठाकुरप्रसाद सिंह

पर्वत के ऊपर है वंशी

नीचे मुरली


मेरी दोनों ओर धार है

धार नहीं प्रिय की पुकार है

मैं रेती-सी बंधी बीच में

बंदी होता मेरा प्यार है


मूढ़ बधिक के बंधन में कसती

मैं कुरली

नीचे मुरली