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पर्वत को पर्वत और राई को राई बोलेंगे / ब्रह्मजीत गौतम

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पर्वत को पर्वत और राई को राई बोलेंगे
आँख मिलाकर सूरज से हम सच्चाई बोलेंगे

यूँ तो तेरे और भी होंगे दीवाने दुनिया में
पर हम ख़ुद को सौ-सौ जान से शैदाई बोलेंगे

शोलों से कर प्यार जिन्होंने फूँक दिया बस्ती को
उन बदज़ात हवाओं को हम हरजाई बोलेंगे

पर्वत को ऊँचाई दे दी, खाई को गहराई
कुदरत पर भी आज सियासत है छाई, बोलेंगे

तेज़ हवा के बल पर तिनका जा पहुँचा अम्बर में
इस ऊँचाई को हम कैसे ऊँचाई बोलेंगे

दौलत या ताक़त से जो चाहें उल्फ़त को पाना
ऐसे कमज़र्फ़ों को हम तो सौदाई बोलेंगे

‘जीत’ न करना बह्¬र की चर्चा तुम हिन्दी-ग़ज़लों में
वरना इक दिन लोग तुम्हें सब बल्वाई बोलेंगे