पर्वा म घुघुवा / चेतन भारती
पर्वा म धुधुवा
नवा राज म चारो मुड़ा मचे हे शोर,
चारो कुरिया म छाही अंजोर ।
छत्तीस बरस के हुड़मा लिका,
बिना बुता काम गिंजरत हे खोरे खोरे ।।
दर्पण घला मुंह बिचकाये,
गिजिर-गिजिर देख हांसत हे ।
हरत नइये जुवानी के दिया,
जन-जन ल ढोढ़िया मन फांसत हे ।।
फुदरत हे मुड़वा लोटा ठेकेदार बने ,
बिनता के धुंगिया फेंकत हे छानी कोत । नवा राज म....
घुमर-घुमर के खोजत रहिगेंव,
बढ़ोत्तरी कती धंधाय हे बस्ती में ।
घोंगटाहा फरिया म पहात जिन्गी,
आंसू ढारत हे गांव इंकर रस्सा कस्सी में ।।
उलट पुलट के सेंध करइया ,
बाढ़ा गीन गला-गली लतखोर । नवा राज म....
उत्ती मुड़ा म भभ कत चिमनी,
जाने काकर सपना उसनावत हे ।
पर्वा म घुघुवा बइठे करत रखवारी,
चारो कोत नक्सलवाद के आगी गुंगुवावत हे ।।
नून लगइया मौज करत हे,
कमिया ल कर दीन कोरे–कोर ।
नवा राज म...
कईसन हवा बोहावत संगी,
मानुखपन के फुन्गी पटावत हे ।
हांसत ‘फुलुवा’ के जिन्गी तरियागे,
उल्का पात उस मनखे उंडावत हे ।।
सम्हलव चलव मिहनत के बस्ती में,
जम्मो कोती जागही जुवानी पुरजोर ।
नवा राज म ....