Last modified on 11 जून 2014, at 23:48

पर-निंदा मिथ्या करि मानै / हनुमानप्रसाद पोद्दार

(राग पूरिया-ताल त्रिताल)
 
पर-निंदा मिथ्या करि मानै, सुनै न कहै का‌उ तें बात।
बुरी लगै परसंसा अपनी, पर की सुनत सदा हरषात॥
छोटन तें बिनम्रता बरतै, करै बडऩ कौ सुचि सत्कार।
निज सुख भूल, देत सुख पर कौं होय परम सुख सहज उदार॥
सहज दयालु रहै दीनन पर, करै सबनि सौं निस्छल प्रेम।
करै न किञ्चित‌ कपट, निभावै सुद्ध सरलता कौ नित नेम॥
बाचा-काछ रखै नित बस में, रहै परिग्रह-संग्रह-हीन।
करै न रति जग के परपंचनि, रहै सदा हरि-सुमिरन-लीन॥
निज-हित पर तें जैसो चाहै, करै सबनि सौं सो व्यवहार।
देखै सदा सबनि में हरि कौं, यहै संत कौ धर्माचार॥