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पर-पुरुष में सदा प्रेमी ही नहीं तलाशती स्त्रियाँ / निधि अग्रवाल

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पर-पुरुष में सदा प्रेमी ही नहीं तलाशती स्त्रियाँ,
कभी-कभी वे तलाशती हैं एक पिता,
जो संबल बने उनकी सभी असफलताओं का
और समझ सके उनकी अनकही व्यथा।

पुरुष नहीं चाहता पिता होना,
क्योंकि पिता होने के लिए
कर देना पड़ता है,
समस्त उच्छृंखलताओं का त्याग।
बेटियाँ प्रेमिकाओं-सी
नेत्रहीन नहीं होतीं,
न ही उन्हें मीठी बातों से
भरमाया जा सकता है।
वह देखना चाहती हैं
पिता को आदर्शों के
उच्चतम पद पर विराजे।
पिता को पतनोन्मुख देख
मौन सिसकती हैं बेटियाँ।

पुरुष, तुम कर लेना झूठा प्रेम
किन्तु
पिता होने का स्वाँग नहीं रचना।
प्रेमियों के छल से,
कहीं गहरे परिचित होती ही हैं प्रेमिकाएँ,
किन्तु बेटियों ने नहीं देखा है,
पिता का कलुषित होना!