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पर प्राण तुम्हारी वह छाया / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
Kavita Kosh से
मैंने न कभी देखा तुमको,
पर प्राण, तुम्हारी वह छाया
जो रहती है मेरे उर में
वह सुंदर है, पावन सुंदर !
मैंने न सुना कहते तुमको
पर मेरे पूजा करने पर
जो वाणी-सुधा बरसाती है
वह सुंदर है, पावन सुंदर !
मैं उस स्पर्श को क्या जानूँ
पर मेरी गीली पलकों पर
जो मृदुल हथेली फिरती है
वह सुंदर है, पावन सुंदर !
मैंने न कभी देखा तुमको,
पर प्राण, तुम्हारी वह छाया
जो रहती है मेरे उर में
वह सुंदर है, पावन सुंदर !