भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पर समेटे बदन-बदन चिड़िया / विनय कुमार
Kavita Kosh से
पर समेटे बदन-बदन चिड़िया।
पर पसारे गगन-गगन चिड़िया।
थी सही नाप तौल हमले की
घोसले में हुई दफ़न चिड़िया।
रात जाने कहाँ बिताएगी
आशियां रख गई रहन चिड़िया।
जाल दाना बहेलिया रटते
ओढ़ती आज भी कफ़न चिड़िया।
चिड़िया-चिड़िया हुए हिरन वन में
आसमां में हिरन-हिरन चिड़िया
बाज़ का राज आ गया फिर से
हो न जाए जलावतन चिड़िया।
छोड़ भागा जिन्हें भला कागा
ढूढ़ती है वही नयन चिड़िया।
पैरहन की तलाश में निकली
हो गई आप पैरहन चिड़िया।