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पलंगा सुतल आहां पिया अहीं मोर पिया थीक हे / मैथिली

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पलंगा सुतल आहां पिया अहीं मोर पिया थीक हे
पिया मन होईया चुनरि रंगवितऊ चुनरि पहिरतहु रे।
बाप तोहर सुप बिनथी माय सुप बेचथि हे
छनि चार भईया खजुर बझाय तकर बहिन नटिन हे ।
एतवा बयन जब सुनलनि सुनि उठी भागलि रे
ललना ढकी लेले वज्र केवार कि मुंह नहिं देखायब रे।
घर पछुअरा में सोनरा कि तोहीं मोरा हित बसु रे
ललना गढि दहिन सोना के कंगनमा धनि पर बोछव रे।
कांख दाबि लेलनि कंगनमा पैर में खरमुआ रे
ललना चलि भेला सुहबे धनि पर बोछव रे।
खोलु खोलु सुहब सुहागिन अहीं दुलरईतिन हे
सुहबे खोलि दिय बज्र केवार कंगन बड सुन्दर रे।
कंगन पहिरथु माय कि आओर बहिन पहिरथ हे
ललना हम नहिं पहिरब कंगनमा कंगन नहिं सोहभ रे।
बाप हमर सुप बिनथी माय सुप बेचथि रे
ललना भईया मोर खजुर बझाय बहिन थीक नटिन रे।
बाप आहां के राजा दशरथ माय कौशल्या रानी रे
ललन चारु भाई पढल पंडित हुनक बहिन थीक हे।


यह गीत श्रीमती रीता मिश्र की डायरी से