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पलकों की टहनियां / निदा नवाज़
Kavita Kosh से
आँखों के सरोवर-तट से
सुनहरे सपनों की सभी
चिड़ियाँ उड़ गईं
जब से पर्वतीय-पवन ने
पलकों की टहनियों पर
आंसूं बनकर बसेरा किया.
मन-मन्दिर में सजी
पुरखों की सभी चित्र्मालाएं
विलीन हो गईं
जब से कोमल अशलोकों के
मधुर सुर
अर्थहीनता की घाटी में
भटक गए।