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पलकों ने चुम्बन के गीत सुने / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
Kavita Kosh से
पलकों ने
चुम्बन के गीत सुने
आँखों ने
ख़्वाबों के फूल चुने
साँसें यूँ
साँसों से गले मिलीं
अंग-अंग
नस-नस में डूब गया
हाथों ने
हाथों से बातें की
और त्वचा ने सीखा
शब्द नया
रोम-रोम
सिहरन के वस्त्र बुने
मेघों से
बरस पड़ी मधु धारा
हवा मुई
पी-पीकर बहक गई
बाँसों के झुरमुट में
चाँद फँसा
काँप-काँप
तारे गिर पड़े कई
रात नये सूरज की
कथा गुने