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पलकों पलकों हर चेहरे पर / देवमणि पांडेय

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पलकों पलकों हर चेहरे पर ठहरा रहता जाने कौन

दिल में प्यार का दरिया बनकर बहता रहता जाने कौन


दुनिया है इक भूल भुलैया लोग यहाँ खो जाते हैं

हर पल मेरा हाथ पकड़कर चलता रहता जाने कौन


कोई अब तक देख न पाया न कोई ये जान सका

हर पत्थर में हर ज़र्रे में उभरा रहता जाने कौन


कभी किसी मासूम के दिल में ख़ूनी ख़ंज़र उतरा है

बीच सड़क पर गर्म लहू सा बिखरा रहता जाने कौन


अक्सर जब तनहा होता हूँ रात के गहरे साए में

उम्मीदों का दीपक बनकर जलता रहता जाने कौन