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पलाशों के सभी पल्लू हवा में उड़ रहे होंगे / अम्बर बहराईची

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पलाशों के सभी पल्लू हवा में उड़ रहे होंगे
मगर इस बार, बंजारे, सुना है ऊँघते होंगे।

उसे भी आख़िरश मेरी तरह हँसना पड़ा अब के
उसे भी था यकीं, उस दश्त में हीरे पड़े होंगे।

मुझे मालूम है इक रोज़ वो तशरीफ़ लाएगा
मगर इस पार सारे घाट दरिया हो चुके होंगे।

हमारे सिलसिले के लोग खाली हाथ कब लौटे
पहाड़ों से नदी इस बार फिर वो ला रहे होंगे।

वो मौसम, जब सबा के दोश पर खुशबू बिखेरेगा
हमारी कश्तियों के बादबाँ भी खुल चुके होंगे।

वो खाली सीपियों के ढेर पर सदियों से बैठा है
उसे, मोती, समंदर की तहों में ढूँढ़ते होंगे।

सियह शब तेज़ बारिश और सहमी-सी फ़िज़ा में भी
बये के घोंसले में चंद जुगनू हँस रहे होंगे।

ये क्या 'अम्बर' कि वीराने में यों ख़ामोश बैठे हो
चलो उट्ठो तुम्हारी राह बच्चे देखते होंगे।