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पलाश के फूल / मनीष मूंदड़ा
Kavita Kosh से
उन पलाश के फूलों की यादें अभी भी ताजा है
दिल में
बसंत की अगुवाई करते
केसरिया रंग बिखेरते
क्या धरती
क्या आसमान
तुम्हारे घर के बागीचे में तो पलाश के पेड़ों की भरमार थी
तुम्हें याद है कैसे हम पलाश के फूलों को चुन कर
होली के रंग बनाने की असफल कोशिश करते?
हमारे हाथ केसरिया रंग जाते
क्या अब भी वह पलाश के पेड़ वहाँ खड़े हैं?
क्या अब भी उनमें फूल उगते हैं?
क्या अब भी तुम उन्हें चुनती हो?
तीस बरस हुए है
अब तो उन्हें काट गिराया होगा...