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पल-पल लुटता चमन बचालो / शैलेन्द्र सिंह दूहन

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पल-पल लुटता चमन बचालो,
जागो वीरों खड्ग संभालो,।
खग की अब फिर पंख कटी है,
रोई फिर से पंचवटी है
घर घर में है सीता बेबस
हे रघुवर फिर धनुष उठालो
पल-पल लुटता चमन बचालो।
गंगा-जमुनी लहरें रोतीं
ग़जलों की हैं बहरें रोतीं,
कविता फिरती भूखी नंगी
कवियों अपना धर्म निभालो
पल-पल लुटता चमन बचालो।
तहज़ीबों के सागर सिकुड़े
न्याय दया के पर्वत उखड़े,
पग-पग पे हैं शूल बिछे तुम
तेज हवा में दीप जलालो
पल-पल लुटता चमन बचालो।
भूखा बचपन रोता है अब
अपना ही शव ढोता है अब,
कानों वाले बहरे जागें
ऐसा कोई शंख बजालो
पल-पल लुटता चमन बचालो।
कृषकों का कोलाहल सुनकर
मजदूरों के आँसू चुनकर,
उथल-पुथल मच जाए फिर से
ऐसी कोई रीत चलालो
पल-पल लुटता चमन बचालो।