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पल पल करवट ले रहा मौसम बे ईमान / रंजना वर्मा

पल पल करवट ले रहा, मौसम बे ईमान।
कभी बसंती हो पवन, कभी उठे तूफ़ान॥

घिरते बादल गगन में, हो जाती बरसात
नन्ही बूंदों को धरा, देती नित सम्मान॥

हमको पुरखों से मिला, है ऐसा संस्कार
हैं अभाव निज भूलते, जब आते मेहमान॥

जाड़े में काँपे बदन, खिल जाती तब धूप
रब की करुणा कि तभी, होती है पहचान॥

संत वही जिनके हृदय, करुणा के आगार
जो दूजों के कष्ट का, लेते नित संज्ञान॥

एक अलख जगदीश है, एक धर्म का रूप
युगों युगों से हैं यही, कहते वेद पुरान॥

माँ के हित रणभूमि में, कटवाते जो शीश
वे तो सारे जगत में, होते अमर महान॥