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पल पल है सुलगते मगर जलते कभी नहीं / रंजना वर्मा
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पल पल हैं सुलगते मगर जलते कभी नहीं
हैं ख़ार नहीं फूल महकते कभी नहीं
नीहार बिंदु आँख में आँसू सजा लिये
रहते हैं सदा आँख में ढलते कभी नहीं
जब जिंदगी निचोड़ दी हाला छलक उठी
पीते हैं बेहिसाब बहकते कभी नहीं
है रात मथ के जुगनुओं को मै निकालती
शायद इसी से दर्द चमकते कभी नहीं
पर फड़फड़ा रहे हैं पींजरों में खग सभी
नज़रें हैं आसमान पे उड़ते कभी नहीं
हैं याद के कपोत सभी अब उड़ान पर
लेकिन किसी भी छत पे उतरते कभी नहीं
ये छंद - कंज भाव - भ्रमर खेलते सदा
उन्मुक्त हुए विश्व से डरते कभी नहीं
अब देखिये कलम है यही अस्त्र हमारा
क़रतीं है ऐसे घाव जो भरते कभी नहीं
ऋतुराज आगमन हुआ कानन सजे हुए
टूटे जो फूल डाल से खिलते कभी नहीं