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पल भर नहीं छोड़ते प्यारे / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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पल भर नहीं छोड़ते प्यारे, पलभर नहीं छोड़ते साथ।
सदा-सदा समीप रहते वे, घुले-मिले प्राणोंमें नाथ॥
देख-देखकर मैं उनका वह पल-पल बढ़ता नूतन रूप।
नित्य-निरन्तर पावन पाती हूँ प्रमोद अति मधुर अनूप॥