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पवन हरी, जंगल भी हरा था / नासिर काज़मी
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पवन हरी, जंगल भी हरा था
वो जंगल कितना गहरा था
बूटा बूटा नूर का ज़ीना
साया साया राहनुमा था
कोंपल-कोंपल नूर की पुतली
रेशा रेशा रस का भरा था
खोशों के अंदर खोशे थे
फूल के अंदर फूल खिला था
शाखें थीं या मेहराबें थीं
पत्ता पत्ता दस्ते-दुआ था
गाते फूल, बुलाती शाखें
फल मीठे, जल भी मीठा था
जन्नत तो देखी नहीं लेकिन
जन्नत का नक़्शा देखा था।