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पशेमानी / मख़दूम मोहिउद्दीन
Kavita Kosh से
पशेमानी<ref>शर्मिन्दगी</ref>
ए ख़ूशा<ref>ख़ूब, बहुत अच्छे</ref>-ओ दिन के जब तुझसे मुलाक़ातें न थीं
ऐसे मुश्किल दिन न थे ऐसी कठिन रातें न थीं ।
जब दिले नादाँ यूँ बेतरह भर आता न था
आतिशे ग़म तेज़ करने वाली बरसातें न थीं ।
शब के सन्नाटे में चुपके-चुपके रो लेना न था
आँख में आँसूँ न थे लब पर मुनाजातें<ref>प्रार्थनाएँ</ref> न थीं ।
जब हरीमे दिल<ref>दिल की चारदिवारी</ref> में रोशन ही न थे ग़म के चिराग़
चाँदनी रातें थीं, ऐसी चाँदनी रातें न थीं ।
शब्दार्थ
<references/>