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पश्चिम धाम / जतरा चारू धाम / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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तदनु दच्छिनक ओर-छोर दय अब्धिक शब्द अकानि
केरल शृ गिमठक श्रुतिपाठक ध्वनि पावन सन्मानि।।29।।

कांची मीनाक्षी मदुराक प्रदक्षिण दक्षिण भाग
करइत दिग-विभाग, पश्चिम दिस चलब कलित अनुराग।।30।।

दूरहिसँ देखब उछलैत तरंग सिन्धु उतुंग
मन्दिर मण्डित कनक-किरणसँ जनु सुमेरुहिक शृंग।।31।।

द्वार सागरक पश्चिम लच्छित पुरी द्वारका धाम
जतय छोर पर आबि बसल रण-छोर कृष्ण बलराम।।32।।

जरान्धसँ सन्धि - बन्धि पुनि नीति पछाड़ल गेल
अरि क गर्व भेल खर्व,यदपि रन-बनहु गछारल भेल।।33।।

महाभारतक निर्माणक आधार - शिला अनुबन्ध
मथुरा-वृन्दा-गोकुलकेर रस-गली गलित, निर्बन्ध।।34।।

पाश्चात्यक विचार वात्या न भविष्यहु सकय हिलाय
तेँ आचार्यवर्य गुरु शंकर थापल पीठ निकाय।।35।।