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पसलियों को कस लिया है एक अजगर ने / जयप्रकाश त्रिपाठी
Kavita Kosh से
फ़कत उड़ने का बहाना एक जंगल और।
रह गया बाक़ी ठिकाना एक जंगल और।
दूर तक आकाश है चारों दिशाओं में,
दूर तक देखे ज़माना एक जंगल और।
पसलियों को कस लिया है एक अजगर ने,
मौत का मंज़र पुराना एक जंगल और।
लद गए दिन फड़फड़ाते पंख खुलने के,
रहा अपना आशियाना एक जंगल और।
वक़्त को पहचान पाना बहुत मुश्किल है,
वक़्त से पहले न जाना एक जंगल और।
खुली आँखों एक सपना सामने जो है,
ख़्वाहिशों में अब न आना एक जंगल और।