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पसीना चुए हैं ये मंज़र तो देखो / बल्ली सिंह चीमा

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पसीना चुए है ये मंज़र तो देखो ।
लगे जून जैसा नवम्बर तो देखो ।

ये जलते हुए घर, ये लाशों के मलबे,
ज़मीं पर लहू का समन्दर तो देखो ।

न हिन्दू मरा है, न सिख ही मरा है,
तुम्हीं हो, ज़रा पास जाकर तो देखो ।

है फ़िरका-परस्ती का उन्माद दिल में,
बना है बहादुर वो कायर तो देखो ।

न जाने मिलेगा इन्हें कब ठिकाना,
भटकते हुए लोग दर-दर तो देखो ।

करो बात इनसे सुनो दर्द इनके,
ये गूँगे नहीं हैं बुलाकर तो देखो ।

दिलों में तो ख़ूनी इरादे छिपे हैं,
उड़े हैं अमन के कबूतर तो देखो ।