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पसीने का इतिहास / पुष्पिता

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सूरीनाम की धरती पर
भारतवंशियों और अफ़्रीकियों के पाँवों ने
घास-मैदान
फुटपाथ-घाँस-बीच
बनाई हैं-पगडंडियाँ
बिना खने
सिर्फ अपने चरण-चिह्नों से।

सूर्य की
भूमध्यरेखीय प्रज्वलित 'मोहर' ने
किया है और अधिक धवल
हरी-फूल भरी धरती पर
दौड़ते हैं सरपट-ल्यौकाना<ref>भारत के गिरगिटान के आकार-प्रकार का बड़ा प्राणी ।</ref> और साँप

समय की तरह
जागती रहती हैं, पगडंडियाँ
सूरीनाम के जंगलों में
पाँव-चारी आदमियों की प्रतीक्षा में।

सूरीनाम की पगडंडियाँ
'माँ की तरह' इंतज़ार करती है।
मज़दूर ग़रीब पैरों को
घर तक पहुँचाने के लिए।

नहरों के पानी में
दिखाई देता है
भारतवंशियों के
पसीने का इतिहास

हॉलैन्ड-सत्ता के कोल्हू पर
अपनी हड्डियों को पेरकर
भारतवंशियों ने निकाली
खेती-बारी के लिए उर्वर-माटी
हिन्दुस्तानी संस्कृति बीजों के लिए।

शकटार के वंशजों की तरह
अपने हाथों खखोर-खखोरकर निकाली
लाइडिंग<ref>भारतवंशी मज़दूरों द्वारा 1873 से खोदकर बनाई गई उन्नीस नहरें, जिनसे धान की खेती में सहायता मिलती थी ।</ref> की अनगिनत नहरें
कामोसारसवेतन वैख
और ओइतकेक की नहरें।

शब्दार्थ
<references/>