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पसीने का गाना / अरुण आदित्य
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खेत में बहता हूँ
चुपके से धरती के कान में कहता हूँ
हरा-भरा कर दो किसान का मन
फैक्ट्री में बहता हूँ
मशीन से कहता हूँ
पैदा करो थोड़ी सी हँसी-खुशी
पौरुष के माथे पर गर्व से चमकता हूँ
संगिनी समीरा के आंचल से कहता हूँ
मेहनत का मोती हूँ प्यार से सहेज लो
धूप से करियाये रूप पर दमकता हूँ
कवि की क़लम काग़ज़ से कहती है
देखो-देखो श्रम और सौंदर्य का अद्भुत बिम्ब