भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पसीने का होना / अरुण आदित्य
Kavita Kosh से
आप जो बचते हैं धूप से
कतराते हैं काम से
चिढ़ते हैं पसीने के नाम से
वातानुकूलित कक्ष में भी हो गए पसीना-पसीना
किसी ने पकड़ तो नहीं लिया आपका सफेद झूठ
या काला सच।