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पहचान न होती तो अनजाना बना लेते / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
पहचान न होती तो अनजाना बना लेते
अपना न अगर मिलता बेगाना बना लेते
एक बुत तराश लेते ख़्वाबों को साथ ले कर
दिल के जहाँ में कोई बुतखाना बना लेते
बातें हज़ार कर के करते हैं तुआरुफ़ वो
अपना न समझते तो पहचाना बना लेते
मौसम भर का ये गुलशन में ग़र न ठहरा
ख़्वाबों की अंजुमन को वीराना बना लेते
जो रोज़ तसव्वुर में आ ख़्वाब है सजाता
पल भर में उसे अपना दीवाना बना लेते
रातों में अगर उल्फ़त की शम्मा जलाते तो
बेदर्द ज़िगर को भी परवाना बना लेते
छलका न जाम कोई साकी ने नज़र फेरी
इश्को वफ़ा में खुद को मस्ताना बना लेते