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पहचान / गौरव पाण्डेय
Kavita Kosh से
मैंने पहचान-पत्र तैयार कर
उसके गले में डाल दिया- "लो बहन!
आज से लोग तुम्हें तुम्हारे नाम से जानेंगे"
वो हँसती हुयी स्कूल चली गई।
एक दिन होम-वर्क करते हुये
उसने पूछ लिया- "भैया तुम तो
पहचान-पत्र डाल कर कहीं नहीं जाते
लोग कैसे जानेंगे तुम्हे ?"
मैंने बिना कुछ सोचे यूँ ही जवाब दिया- "हाँ बहन!
कोई पहचान नहीं मेरी, अभी कोई नहीं जानता मुझे।"
कहते-कहते मैं दार्शनिक हो उठा था
वो उस दिन उदास चुपचाप कुछ सोचती रह गई ।
फिर एक दिन मैं बैठा कुछ लिख रहा था
वो दरवाजे से दौड़ती अंदर आई
और एक वैसा ही पहचान-पत्र
मेरे गले में डाल दिया
"लो भैया अब तुम्हें भी लोग जानेंगे"
उस पर बड़े सुंदर अक्षरों में लिखा था-
- शिखा के भैया गौरव*