भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पहचान / नरेश सक्सेना

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धुंए के साथ ऊपर उठूँगा मैं,

बच्चो जिसे तुम पढ़ते हो कार्बन दाई आक्साइड,

वही बन कर छा जाऊंगा मैं,

पेड़ कहीं होंगे तो और हरे हो जायेंगे,

फल कहीं होंगे तो और पक जायेंगे.

जब उन फलों की मिठास तुम तक पहुंचेगी,

या हरियाली भली लगेगी,

तब तुम मुझे पहचान लोगे,

और कहोगे, "अरे पापा"