पहने नये लिबास, नज़र आ रही ग़ज़ल
बदले मिजाज़ खास, नज़र आ रही ग़ज़ल।
ख़ुशबू बिखेर, दे रही हर दर्द को सुकून
हर दिल के आस-पास, नज़र आ रही ग़ज़ल।
दिखती है देवदास को 'पारो' नई-नई
पारो को देवदास नज़र आ रही ग़ज़ल।
साक़ी, सुराही,जाम, जो इसमें तलाशते
उनको तनिक उदास, नज़र आ रही ग़ज़ल।
बूढ़े, जवां, हसीन , कलमकार, दिलजले
सबकी बुझाती प्यास, नज़र आ रही ग़ज़ल।
जिसमें भरा हो, शर्बते-दीदार यार का
चांदी का वो गिलास, नज़र आ रही ग़ज़ल।
ताज़ा-तरीन साज़, सजें जैसे दुल्हनें
'विश्वास' दिल शनास, नज़र आ रही ग़ज़ल।