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पहला गुलाब / महेश सन्तोषी
Kavita Kosh से
क्या पहले गुलाब ही बने रहे
आखिरी गुलाब?
और लिया किसने छू
चुभोया मन और हम
कैसे जिये किस-किस चुभन के संग?
क्या पहिले गुलाब ही बने रहे
आखिरी गुलाब?
मत दो,
तुम मुझे कोई भी जबाब मत दो,
तुम मुझसे कोई भी जबाब मत मांगो,
जब तुम छूटे,
क्या नहीं छूटा?
ऐसा लगा जैसे ज़िन्दगी जीते जी
पीछे छूट गई!
मगर हमने तो सपनों तक में
कहीं खोजी नहीं
प्यार की पगडण्डियाँ
नई-नई,
पहला प्यार ही, पहला होता है,
जो फिर किसी दूसरे पर दोहराया नहीं जाता,
जो दोहराये जाते ही, मुरझा जाता है,
वह प्यार नहीं, गुलाब होता है!