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पहला चुम्बन / प्रेमचन्द गांधी

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जो हमें याद नहीं रहता
लेकिन हमारी देह पर अंकित हो जाता है
चेतना और स्मृति के इतिहास को कुरेद कर देखो
हमारी दादी, नानी, दाई, नर्स या
किसी डॉक्‍टर ने लिया होगा
इस पृथ्‍वी पर आने के स्‍वागत में
हमारा पहला चुम्बन और
सौंप दिया होगा माँ को
माँ ने लिया होगा दूसरा चुम्बन
पहली बार हमने सूखे मुँह से
माँ की छातियों को चूमा होगा

शैशव काल में हम
जिसकी भी गोद में जाते
चुम्बनों की बौछार पाते
हर किसी में खोजते
हमारी माँ जैसी छातियाँ

हम नहीं जानते
कितनी स्त्रियों का दूध पीकर
हम बड़े हुए
कितनी स्त्रियों ने दिया
हमें अपना पहला चुम्बन

थोड़ा-सा बड़ा होते ही
खेल-खेल में हमने
कितने कपोलों पर अंकित किया
अपना प्रेम
हम नहीं जानते

जन्‍म से मृत्‍यु तक
कितने होते हैं जीवन में चुम्बन
हम नहीं जानते

जानवरों में जैसे माँएँ
अपनी जीभ से चाट-चाट कर
अपनी सन्तान को सँवारती हैं
मनुष्‍यों के पास चुम्बन होते हैं
जो जिन्दगी सँवारते हैं।