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पहला प्यार नहीं लौटता / अमरजीत कौंके
Kavita Kosh से
पक्षी उड़ते
जाते हैं
दूर दिशाओं में
लौट आते
आखिर शाम ढलते
फिर अपने
घोंसलों में पंख पैफलाये
गाड़ियां जातीं
वापिस आ जातीं
स्टेशनों पर
लंबी सीटियां बजातीं
मौसम आते
लौट जाते
दिन चढ़ता
छिप जाता
फिर चढ़ता
बर्फ पिघलती
नदियों में नीर बहता
समुंदरों में पानी
भाप बन कर उड़ता
बादल बनता
फिर पहाड़ों की
चोटियों पर
बर्फ बन कर चमकता
उड़ती आत्मा
शून्य में भटकती
फिर किसी जिस्म में
प्रवेश करती
सब कुछ जाता
सब कुछ लौट आता
नहीं लौटता
इस ब्रहामाण्ड में
तो सिर्फ
पहला प्यार नहीं लौटता
एक बार गुम होता
तो मनुष्य
जन्म-जन्म
कितने जन्म
उस के लिए
भटकता रहता...।