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पहला प्रेम / मुकेश कुमार सिन्हा

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पहला प्रेम
जिंदगी की पहली फुलपैंट जैसा
पापा की पुरानी पेंट को
करवा कर अॉल्टर पहना था पहली बार!
फीलिंग आई थी युवा वाली
तभी तो, धड़का था दिल पहली बार!

जब जीव विज्ञान के चैप्टर में
मैडम , उचक कर चॉक से
बना रही थी ब्लैक बोर्ड पर
संरचना देह की!
माफ़ करना,
उनकी हरी पार वाली सिल्क साडी से
निहार रही थी अनावृत कमर,
पल्लू ढलकने से दिखी थी पहली बार!!

देह का आकर्षण
मेरी देह के अंदर
जन्मा-पनपा था पहली बार
हो गया था रोमांचित
जब अँगुलियों का स्पर्श
कलम के माध्यम से हुआ था अँगुलियों से
नजरें जमीं थी उनके चेहरे पर
कहा था उन्होंने, हौले से
गुड! समझ गए चैप्टर अच्छे से!

मेरा पहला सपना
जिसने किया आह्लादित
तब भी थी वही टीचर
पढ़ा रही थी, बता रही थी
माइटोकॉंड्रिया होता है उर्जागृह
हमारी कोशिकाओं का
मैंने कहा धीरे से
मेरे उत्तकों में भरती हो ऊर्जा आप
और, नींद टूट गयी छमक से!!

पहली बार दिल भी तोडा उन्होंने
जब उसी क्लास में
चली थी छड़ी - सड़ाक से
होमवर्क न कर पाने की वजह से
उफ़! मैडम तार-तार हो गया था
छूटकू सा दिल, पहली बार
दिल के अलिंद-निलय सब रोये थे पहली बार
सुबक सुबक कर!
जबकि मैया से तो हर दिन खाता था मार!

मेरे पहले प्रेम का
वो समयांतराल
एक वर्ष ग्यारह महीने तीन दिन
नहीं मारी छुट्टियां एक भी दिन!!

वो पहला प्रेम
पहली फुलपैंट
पहली प्रेमिका
खो चुके गाँव के पगडंडियों पर
हाँ, जब इस बार पहुंचा उन्ही सड़कों पर
कौंध रही थी जब बचकानी आदत! सब कुछ
मन की उड़ान ले रही थी सांस
धड़क कर!!

ये है कन्फेशन जिंदगी के...