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पहला स्पर्श / शशि सहगल
Kavita Kosh से
तुमने जिस दिन
पहली बार मुझे छुआ था
मेरी कुँवारी देह
थरथरा उठी थी।
मैं चाहती थी तुम्हारा सान्निध्य
अधिक
और अधिक
पर, जाने क्यों
तुम एकाएक उठकर चले गए।
आज भी
तुम्हारा वह पहला स्पर्श
याद है मुझे
उसी तरह
और मैं अब भी
आह्लादित हो उठती हूँ
उस संवेदना से।
सच तो यह है कि
कुछ संवेदनाएँ कभी नहीं मरतीं
ताज़ा रहती हैं वे
अपनी पूरी ताज़गी के साथ
तन में बसी
आखिरी साँस तक।