भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पहलि पहर राती बितल सब लोग सुतल रे / मैथिली
Kavita Kosh से
					
										
					
					   ♦   रचनाकार: अज्ञात
भारत के लोकगीत
- अंगिका लोकगीत
 - अवधी लोकगीत
 - कन्नौजी लोकगीत
 - कश्मीरी लोकगीत
 - कोरकू लोकगीत
 - कुमाँऊनी लोकगीत
 - खड़ी बोली लोकगीत
 - गढ़वाली लोकगीत
 - गुजराती लोकगीत
 - गोंड लोकगीत
 - छत्तीसगढ़ी लोकगीत
 - निमाड़ी लोकगीत
 - पंजाबी लोकगीत
 - पँवारी लोकगीत
 - बघेली लोकगीत
 - बाँगरू लोकगीत
 - बांग्ला लोकगीत
 - बुन्देली लोकगीत
 - बैगा लोकगीत
 - ब्रजभाषा लोकगीत
 - भदावरी लोकगीत
 - भील लोकगीत
 - भोजपुरी लोकगीत
 - मगही लोकगीत
 - मराठी लोकगीत
 - माड़िया लोकगीत
 - मालवी लोकगीत
 - मैथिली लोकगीत
 - राजस्थानी लोकगीत
 - संथाली लोकगीत
 - संस्कृत लोकगीत
 - हरियाणवी लोकगीत
 - हिन्दी लोकगीत
 - हिमाचली लोकगीत
 
पहलि पहर राती बितल सब लोग सुतल रे देवकी चलली नहाय कि दस सखी संग लागु रे
कियो सखी हाथ पैड माजथि कियो गगरी भरु रे
कियो ठार कदम तर नैना स नीर भरु रे 
यशोमति हाथ पैर माजथि कौशल्या गगरी भरु रे देवकी ठाढ कदम तर नैना स नीर भरु रे 
किये तोरा कन्त तुरन्त कयल किये दैव दुरि कयल रे
किये तोरे ठाढ कदम तर नैना स नीर बहु रे 
सात पुत्र दैए देलनि कंस हरि लेलनि 
आठम रहियऊ गर्भ स उनको नहिं भरोस थीक रे 
चुप चुप रहु बहिन सहोदर अपन बालक हम भेजब आहांक जोइयायेब रे
 यह गीत श्रीमती रीता मिश्र की डायरी से
	
	