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पहली गलती कि तेरा नाम लिए जाते हैं / आशुतोष द्विवेदी
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पहली गलती कि तेरा नाम लिए जाते हैं
उस पे' हद ये कि सरे-आम लिए जाते हैं
अहले-महफ़िल भला क्योंकर न सजा दे हमको ?
हम निग़ाहों से भरे जाम लिए जाते हैं
आये तो थे तेरे पहलू में उम्मीदें लेकर,
वक्ते-रुख्सत दिले-नाकाम लिए जाते हैं
हमको जिस बात पे रुस्वाई मिली थी हरसूँ,
वो उसी बात पे' ईनाम लिए जाते हैं
हम ग़रीबों को कहाँ पूछ रही है दुनिया,
ग़म-गुसारी के भी अब दाम लिए जाते हैं
हमारे हाल पे' कुछ लोग मज़ा लेते हैं,
उस गली में हमें हर शाम लिए जाते हैं
हैं वो कहते हमें दीवाना बेरुखी के साथ,
और हम हँस के ये इल्ज़ाम लिए जाते हैं
अपनी मर्ज़ी से थे चलते तो भटक जाते थे,
अब तो जाते हैं, जहाँ राम लिए जाते हैं